
उपराष्ट्रपति चुनाव 2025 की तारीख तो तय है – 9 सितंबर। लेकिन उससे पहले ही सियासत में बवाल तय है। इस बार मुकाबला सिर्फ इंडिया बनाम NDA नहीं है, बल्कि ‘राज्यीय अस्मिता’ बनाम ‘राजनीतिक गठबंधन’ भी है।
सवाल ये नहीं कि कौन जीतेगा, सवाल ये है कि चंद्रबाबू नायडू और एमके स्टालिन किसे जिताना चाहेंगे, और क्यों?
साउथ बनाम साउथ: जब चुनाव हो गया क्षेत्रीय pride का मुकाबला
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इंडिया गठबंधन ने मैदान में उतारे रिटायर्ड जज बी. सुदर्शन रेड्डी, मूलतः तेलंगाना (पुराना आंध्र) से।
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एनडीए ने चुना अनुभवी गवर्नर और बीजेपी नेता सी. पी. राधाकृष्णन, तमिलनाडु से।
मतलब दोनों ही उम्मीदवार “मेरा क्षेत्र, मेरी ज़मीन” कार्ड खेलने की स्थिति में हैं। लेकिन संकट ये है कि दोनों ही दल (TDP-DMK) अपने-अपने राज्य से हैं – और दोनों के ही सामने “दिल्ली बनाम देसी” की टेंशन है।
इतिहास क्या कहता है?
| साल | चुनाव | टीडीपी स्टैंड | डीएमके स्टैंड |
|---|---|---|---|
| 2002 | राष्ट्रपति | NDA सपोर्ट | NDA सपोर्ट |
| 2007 | राष्ट्रपति | कांग्रेस विरोध | कांग्रेस सपोर्ट |
| 2017 | राष्ट्रपति | NDA सपोर्ट | UPA सपोर्ट |
| 2018 | उपराष्ट्रपति | NDA सपोर्ट | INDIA सपोर्ट |
पैटर्न क्लियर है:
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दोनों दल “गठबंधन धर्म” निभाने में अव्वल रहे हैं।
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राज्यीय भावनाएं तभी दिखती हैं, जब वो गठबंधन से मेल खाएं।
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इस बार पहली बार ऐसा होगा जब दोनों उम्मीदवार ही साउथ से हैं।
वोटों का गणित या इमोशन का पॉलिटिक्स?
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विजयी होने के लिए चाहिए: 392 वोट
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एनडीए के पास: 425 (292 लोकसभा + 133 राज्यसभा)
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इंडिया के पास: 307 (230 लोकसभा + 77 राज्यसभा)
मतलब खेल एकतरफा है, लेकिन संदेश दोतरफा होंगे।
क्या करेगा TDP: चंद्रबाबू की दुविधा
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सुदर्शन रेड्डी का कनेक्शन: तेलंगाना (पुराना आंध्र)
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TDP: NDA का हिस्सा, लेकिन आंध्र में राजनीतिक विरोधियों को जवाब देना ज़रूरी
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अगर वोट दिया सुदर्शन को ➡ NDA नाराज़

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अगर वोट दिया राधाकृष्णन को ➡ विपक्ष बोलेगा, “अपने तेलंगाना के भाई को ठुकराया”
नायडू को तेलंगाना वाले गुस्से और दिल्ली की दोस्ती में बैलेंस बनाना है।
DMK का संकट: स्टालिन बोले तो बुरे फंसे!
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राधाकृष्णन – तमिलनाडु के बेटे, NDA उम्मीदवार
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DMK – INDIA गठबंधन की रीढ़
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अगर वोट दिया NDA को ➡ INDIA गठबंधन की एकता को झटका
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अगर वोट दिया विपक्षी को ➡ तमिलनाडु में BJP बोलेगी, “अपने राज्य के साथ धोखा”
स्टालिन के लिए ये चुनाव “थलाइवा टेस्ट” बन गया है।
राजनीति में दिल नहीं, डेटा चलता है!
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नायडू सोच रहे: “अगर गठबंधन के साथ जाऊँ, तो तेलंगाना में क्या मुँह दिखाऊँ?”
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स्टालिन सोच रहे: “अगर अपने राज्य के आदमी को छोड़ा, तो बीजेपी DMK को ‘द्रविड़ विरोधी’ बता देगी!”
इस चुनाव में कोई हार नहीं रहा, लेकिन सब जीत का मतलब बदल रहे हैं।
क्या निकलेगा संदेश?
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INDIA बोलेगा: “NDA की पार्टियाँ दिल्ली के इशारे पर राज्यीय हितों को कुर्बान कर रही हैं।”
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NDA बोलेगा: “INDIA गठबंधन की पार्टियाँ अपनी जमीन छोड़ चुकी हैं, ये दिल्ली की कठपुतली हैं।”
पर असली बोझ नायडू और स्टालिन पर है। चुनाव तो फॉर्मेलिटी है, लेकिन उसका PR युद्ध असली खेल है।
चुनाव नहीं, अग्निपरीक्षा है!
उपराष्ट्रपति कौन बनेगा, ये तो लगभग तय है। लेकिन कौन किसको वोट देता है – ये तय करेगा 2026 में किसका सियासी कद कितना बड़ा रहेगा।
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